100+ बिना गलती की सजा शायरी

हेलो दोस्तों, दोस्तों हमें कभी-कभी बिना गलती के भी सजा मिल जाती है। जैसे कि कभी रास्ते में चलते चलते हमारा पैर केले के छिलके पर रख हो जाता है और हम फिसल कर गिर जाते हैं। इसमें हमारी तो कोई गलती नहीं होती। लेकिन हमें तब भी सजा मिल जाती है। ऐसा हमारे साथ जिंदगी में कई बार होता है। इसलिए हम आज की इस पोस्ट में आपके लिए बिना गलती की सजा शायरी लेकर आए हैं। दोस्तों इस पोस्ट में बहुत सारी बिना गलती की सजा शायरी है। उम्मीद है कि आपको यह पोस्ट पसंद आएगी।
बिना गलती की सजा शायरी

Bina Galati ki Saja Shayari in Hindi

जो दे रहे हो हमें ये तड़पने की सज़ा तुम,

हमारे लिए ये सज़ा ऐ मौत से भी बदतर है.

 

किस बात की सजा दे रहे हो,

प्यार किया इसलिए, या तुमसे ज्यादा प्यार किया इसलिए.

 

उनकी खामोशी ही मेरी सजा है,

जानबूझकर दर्द देना उनकी अदा है.

 

आँखों ने तुमकों चाहा इतना जरुर है,

दिल‌ को‌ सजा मत देना ये बेकसूर है.

 

मांग भरने की सज़ा कुछ इस कदर पा राहा हूं,

उसकी मांग पूरी करते करते मांग मांग कर खा राहा हू.

 

इश्क़ के खुदा से पूछो उसकी रजा क्या है,

इश्क़ अगर गुनाह है तो इसकी सजा क्या है.

 

हद चाहिए सज़ा में उक़ूबत के वास्ते,

आख़िर गुनाहगार हूँ काफ़र नहीं हूँ मैं.

 

इश्क़ में जो मिलती है वो सज़ा ही कुछ और है,

कभी तन्हा रहके देखो तन्हाई का मज़ा ही कुछ और है.

 

कत्ल तुम्हारी नशीली आँखों ने किया,

सजा-ए-इश्क़ के जख़्म पर मरहम लगा रहा हूँ.

 

कोई तुम्हें देखकर मुस्कुरा दे तो उसे प्यार मत समझो,

किसी की छोटी-सी गलती पर, उसे गुनहगार मत समझो.

 

ना जिद है ना कोई गुरुर है हमें, 

बस तुम्हे पाने का सुरूर है हमें,

इश्क गुनाह है तो गलती की हमने,

सजा जो भी हो मंजूर है हमें। 

 

क्यूँ करते हो मुझसे

इतनी ख़ामोश मुहब्बत..

लोग समझते है

इस बदनसीब का कोई नहीँ..

 

खुशमिजाजी मशहूर थी हमारी,

सादगी भी कमाल की थी..

हम शरारती भी इंतेहा के थे,

अब तन्हा भी बेमिसाल हैं..

 

दिल में है जो दर्द वो दर्द किसे बताएं!

हंसते हुए ये ज़ख्म किसे दिखाएँ!

कहती है ये दुनिया हमे खुश नसीब!

मगर इस नसीब की दास्ताँ किसे बताएं!

 

हर इनायत हर खुशी आपकी हो,

महक उठे वो महफ़िल जिसमे हँसी आपकी हो,

कोई भी लम्हा आप उदास ना हो,

खुदा करे ज़न्नत जैसी ज़िंदगी आपकी हो.

 

मुझे मंजूर थे वक़्त के सब सितम मगर, तुमसे मिलकर बिछड़ जाना ये सजा ज़रा ज्यादा हो गयी।

 

इश्क़ के खुदा से पूछो उसकी रजा क्या है, इश्क़ अगर गुनाह है तो इसकी सजा क्या हैं।

 

क्यों ना मिलती हमे मोहब्बत में सजा आखिर, हमने भी बहुत दिल तोड़े थे उस सख्स की खातिर।

 

क्या पता उसको कि वो मुझ को सज़ा देता है, वो तो मासूम है जीने की दुआ देता हैं।

 

प्यार करते हो तुम या सजा देते हो, जब हँसने का वक़्त होता है रुला देते हो।

 

तुम तो दुनिया से निराली ही सजा देते हो, कितने चालाक हो क़ातिल दुआ देते हो।

 

मोहब्बत की अदालत में इन्साफ कहाँ होता है, सजा उसी को मिलती है जो बेगुनाह होता हैं।

 

कोई मिला ही नहीं जिससे वफ़ा करते, हर इक ने धोखा दिया किस-किस को सज़ा देते।

 

कोई अच्छी सी सज़ा दो मुझको, चलो ऐसा करो भुला दो मुझको !

 

जो जुर्म करते हैं इतने बुरे नहीं होते,

सज़ा न देके अदालत बिगाड़ देती है. राहत इंदौरी

 

मैंने आजाद किया अपनी वफाओ से तुझे,

बेवफाई की सजा मुझको सुनाई जाए.

 

उस शहर में ज़िंदा रहने की सजा काट रही हूं,

जहां जज्बातों की कोई कदर ही नहीं.

 

क्यों ना मिलती हमे मोहब्बत में आखिर,

हमने भी बहुत दिल तोड़े थे उस सख्स की खातिर.

 

मोहब्बत की अदालत में इन्साफ कहाँ होता है,

सजा उसी को मिलती है जो बेगुनाह होता है.

 

खुलकर दिल से मिलो तो सजा देते है लोग,

इश्क़ की छाँव में बैठे दो परिंदों को भी उड़ा देते है लोग.

 

लोगो भला इस शहर में कैसे जिएँगे हम जहाँ,

हो जुर्म तन्हा सोचना लेकिन सज़ा आवारगी.

 

मोहब्बत की मिसाल में, बस इतना ही कहूँगा,

बेमिसाल सज़ा है, किसी बेगुनाह के लिए.

 

ऐसे भी मोहब्बत की सजा देती है दुनिया, मर जाए तो जीने की दुआ देती है दुनिया।

 

शहर में ज़िंदा रहने की सजा काट रहा हूं, जहाँ जज्बातों की कोई कदर ही नहीं।


आँखों ने तुमकों चाहा इतना जरुर है, दिल‌ को‌ सजा मत देना ये बेकसूर हैं।

 

मैंने आजाद किया अपनी वफाओ से तुझे, बेवफाई की सजा मुझको सुनाई जाए।

 

दिल पर लगी तेरी तस्वीर हटा दी है, दर्द तो बहुत हुआ पर मैंने खुद को ये सजा दी हैं।

 

कोई तुम्हें देखकर मुस्कुरा दे तो उसे प्यार मत समझो, किसी की छोटी-सी गलती पर उसे गुनहगार मत समझो।

 

तू साथ है तो फिर कोई गम नहीं, पर तेरा रूठना भी किसी सजा से कम नहीं।

 

खुदा ने पूछा क्या सजा दूँ उस बेफ़वा को,

दिल से आवाज़ आई मोहब्बत हो जाये उसे भी.

 

दिल पर लगी तेरी तस्वीर हटा दी है,

दर्द तो बहुत हुआ पर मैंने खुद को ये सजा दी है.

 

ज़िंदा हु मगर ज़िंदगी से दूर हु मैं,

आज क्यों इस कदर मजबूर हूँ मैं,

बिना गलती की सजा मिलती है मुझे,

किस से कहूं की आखिर बेक़सूर हु मैं

 

ले लो वापस ये आँसू ये तड़प और ये यादें सारी,

नहीं हो तुम अगर मेरे तो फिर ये सज़ाएं कैसी.

 

मुझे मंजूर थे वक़्त के सब सितम मगर,

तुमसे मिलकर बिछड़ जाना ये सजा ज़रा ज्यादा हो गयी.

 

इश्क में कभी कोई ऐसी खता न हो,

मिले तो बिछड़ने की सजा न हो.

 

जिंदगी से बड़ी सजा ही नहीं,

और क्या जुर्म है पता ही नहीं.

 

क्या पता उसको कि वो मुझ को सज़ा देता है,

वो तो मासूम है, जीने की दुआ देता है.

 

कोई अच्छी सी सज़ा दो मुझको,

चलो ऐसा करो भुला दो मुझको.

 

सजा जो भी दोगी वो मंजूर होगी,

पर तेरी बेरुखी ना मंजूर होगी.

 

इश्क में खता हो तो बेसक उसे सजा दो,

पर दिल पर पत्थर रखकर उसे बुला मत दो.

 

मुझसे मोहब्बत करती, तो मेरी गलती माफ़ कर जाती

एक छोटी सी बात पर, यूँ रिश्ता नहीं तोड़ जाती.

 

इश्क़ के खुदा से पूछो उसकी रजा क्या है,

इश्क़ अगर गुनाह है तो इसकी सजा क्या है.

 

कोई मिला ही नही जिससे वफ़ा करते ,

हर इक ने धोखा दिया किस-किस को सज़ा देते …

 

हम हैं कि क्या क्या सोचते हैं गलतऔरों के फेर में,

अफसोस कि खुद को भी, औरों कीनज़र से देखते हैं !

 

गीता का ज्ञानभी उल्टा हो गया है आजकल दोस्तो,

लोगों के शरीरज़िंदा हैं मगर, #आत्मा मरी देखते हैं!

 

मिट गए न जाने कितने #ख़ुदा की तलाश में,

मगर अब तो हर तरफ हम, ख़ुदा ही ख़ुदा देखते हैं !……

 

खुदा ने पूछा क्या सजा दूँउस बेफ़वा को, दिल से आवाज़ आई मोहब्बत हो जाये उसे भी।


किस बात की सजा दे रहे हो, प्यार किया इसलिए या तुमसे ज्यादा प्यार किया इसलिए।

 

इश्क़ के खुदा से पूछो उसकी रजा क्या है, इश्क़ अगर गुनाह है तो इसकी सजा क्या हैं ?

 

मोहब्बत की मिसाल में बस इतना ही कहूँगा, बेमिसाल सज़ा है किसी बेगुनाह के लिए।

 

सजा मिली उन गुनाहों की जो मेरे हरगिज न थे,

मैं वो आँसू भी रोया जो खान साहब के नसीब में न थे।.

 

दुश्मनों को सज़ा देने की एक तहज़ीब है मेरी,

मैं हाथ नहीं उठाता बस नज़रों से गिरा देता हूँ.

 

चलो बाट लेते हैं अपनी सज़ाऐं.

ना तुम याद आओ ना हम याद आए.

 

बहुत दर्द देती है वो सजा,

इश्क़ में वफ़ा करने के बाद जो मिलती है.

 

लौटा जब वो बिना जुर्म की सजा काटकर,

सारे परिन्दें रिहा कर दिए उसने घर आकर.

 

अंजाम-ए-वफ़ा ये है जिसने भी मोहब्बत की,

मरने की दुआ माँगी जीने की सज़ा पाई.

 

कैदी तेरी जुल्फों का है आजाद जहां से,

मुझको रिहाई तो सजाओ ने दिलाई.

 

नज़र अंदाज़ करने की सजा देनी थी तुमको,

तुम्हारे दिल में उतर जाना ज़रूरी हो गया था.

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