350+ इंसानियत पर शायरी - Insaniyat Shayari in Hindi 2024

दोस्तों, अगर हर इंसान के अंदर इंसानियत हो तो कोई दुखी नहीं होगा। दोस्तों, आज की इस पोस्ट में आपको इंसानियत पर कुछ शायरी मिलगी। आप इन शायरी को अपने सोशल मीडिया पर शेयर करे। उम्मीद है के आपको ये पोस्ट पसंद आएगी। 

Insaniyat Shayari

 इंसानियत शायरी इन हिंदी - Insaniyat Shayari in Hindi 

खड़े पेड़ से सीख लिया एक

छोटा सा सन्देश तपते रहना है खुद

पर इंसानियत नहीं भूलना यही है

हमारे पूर्वजो का आदेश.


उस शख्स का ग़म भी कोई सोचे,

जिसे रोता हुआ ना देखा हो किसी ने।


इंसानियत तो मैंने आज ब्लड बैंक में देखी थी,

खून की बोतलों पर मजहब लिखा नही होता।


ऐ आसमान तेरे ख़ुदा का नहीं है ख़ौफ़

डरते हैं ऐ ज़मीन तिरे आदमी से हम।


अब तू ही कोई मेरे ग़म का इलाज कर दे,

तेरा ग़म है तेरे कहने से चला जायेगा।


ग़म देकर तुमने खता की,ऐ सनम

तुम ये न समझना, तेरा दिया हुआ

ग़म भी,हमें दवा ही लगता है।


तुझको पा कर भी न कम हो सकी

बेताबी दिल की,इतना आसान तेरे

इश्क़ का ग़म था ही नहीं।


ना जाने उनकी ऐसी क्या मज़बूरी आ गयी हैं

हमसे बात करने में उन्हें बड़ी दिक्कत आ रही हैं।


किस्मत के तराज़ू में तो फकिर हैं,हम

और दर्द दे दिल में हम सा कोई नहीं,


दर्द में भी ये लब मुस्कुरा जाते हैं,

बीते लम्हे हमें जब भी याद आते है।


जिसके दिल पर भी क्या खूब गूजरी होगी,

जिसने इस दर्द का नाम मुहब्बत रखा होगा,


किस दर्द को लिखते हो इतना डूब कर,

एक नया दर्द दे दिया है उसने ये पूछकर।


किसी चीज के लिए अपना रुतबा ना गिराए,

क्योंकि आत्म-सम्मान ही सब कुछ होता है।


ख़ुद की इज़्ज़त ख़ुद के हाथ होती है

दूसरों के आगे हाथ फैलाने से नहीं.


कोई कितना भी पैसे वाला क्यों ना हो

वह इज़्ज़त कहीं से ख़रीद ही नहीं सकता.


आँखो में आँसू और दिल में कुछ अरमान रख लो,

लम्बा सफर हैं मोहब्बत का जरुरी सामान रख लो,

Insaniyat Shayari In Hindi 2 Line 

कौन किस कौम का है ये सवाल ही ना होता, सिर्फ इंसानियत एक धर्म होता तो ये हाल ही ना होता।


कुछ डॉक्टर कुछ वैज्ञानिक तो कुछ विद्वान् बन गए, कुछ बनने के चक्कर में नाजाने कितने इंसान बच गए।


एक जानवर दूसरे जानवर का होते देखा है मैंने मगर आज एक इंसान दूसरे इंसान का ना रहा।


ना किसी क़यामत से रह गया है ना भगवान् से रह गया है, इंसान को डर बस अब इंसान से रह गया है।


दोनों दिन ब दिन जेहरीले हो रहे हैं, अब इंसान और सांप में फ़र्क़ क्या बाकी है।


उसूल मर गए झूठी शान ज़िंदा है, इंसानियत मर चुकी है बस इंसान ज़िंदा है।


जो मदद कर दे बिना मज़हब देखे आज की तारिख में वो फरिश्ता है, भूल गए हैं सभी सबसे बढ़कर इंसान से इंसान का रिश्ता है।


आज लाखों डिग्रीयां हो गई है कॉलेजों में मगर इंसानियत का पाठ अब कोई नहीं पढ़ता।


सभी को सभी के आंसू झूठे नज़र आने लगे है, अब लगता है दिल सीने में पत्थर के आने लगे हैं।


ये भेस बदलने का दौर आया गजब का है, समझ नहीं आता रावण और इंसान में फ़र्क़ क्या है।


कामियाबी ऊपर और इंसानियत नीचे रह गई, पैसे कमाने की ख्वाहिश में इंसानियत कहीं पीछे रह गई।


अब भला क्या ही कहा जाए इंसान से, जूतों की क़ीमत ज्यादा हो गई है जान से।


इनाम मिल रहे हैं ईमान-ऐ-दीन बेच कर, इंसान ज़मीन खरीद रहा है ज़मीर बेच कर।


मेरी बीमीरी भी यही और यही मेरी दवा है, मैं इंसान हूँ मेरा सिर्फ पैसा ही सगा है।


मेरी जबान के मौसम बदलते रहते हैं, मैं तो आदमी हूँ मेरा ऐतबार मत करना।


इंसानियत मरती है तो मर जाने दो, मेरा मक़सद बस अब पैसा बचाना है।


अब क्या ही दलील राखी जाएगी ऊपर वाले की अदालत में, जब इंसान ही ज़िम्मेदार है इंसानियत की इस हालत में।

इंसानियत स्टेटस

समझाने की खातिर यूँ लाखों कबीर ना मरते, आज काश आज इंसानियत ज़िंदा होता तो यूँ ज़मीर ना मरते।


ज़रूरी सौ बात की एक बात जान लेना, एक इंसान के होते है कई भेस उस एक इंसान को कई बार जान लेना।


अगर मोहब्बत की हद नहीं कोई,

तो दर्द का हिसाब क्यूँ रखूं।


आज लाखों डिग्रीयां हो गई है कॉलेजों में

मगर इंसानियत का पाठ अब कोई नहीं पढ़ता।


तेरा प्यार पाने के लिए मैंने कितना

इंतज़ार किया, और उस इंतज़ार में

न जाने कितनों से प्यार किया।


जिन्हें महसूस इंसानों के रंजो-गम नहीं होते,

वो इंसान भी हरगिज पत्थरों से कम नहीं होते।


इसीलिए तो यहाँ अब भी अजनबी हूँ मैं

तमाम लोग फ़रिश्ते हैं आदमी हूँ मैं।


इन्सानियत की रौशनी गुम हो गई कहाँ,

साए तो हैं आदमी के मगर आदमी कहाँ.


सच्चाई थी पहले के लोगों की जुबानों में,

सोने के थे दरवाजे मिट्टी के मकानों में।


इंसानियत दिल मे होती है हैसियत मे

नही उपरवाला कर्म देखता है वसीयत नही.


चंद सिक्कों में बिकता है इंसान का ज़मीर,

कौन कहता है मुल्क में महंगाई बहुत है।

इंसानियत पर सुविचार

मेहनत के प्रति मन मै अपने

श्रद्धा हमेशा बनाए रखना

जिंदगी मे बस इंसानियत को

ही अपना उसूल बनाए रखना.


इंसाँ की ख़्वाहिशों की कोई इंतिहा नहीं,दो

गज़ ज़मीं भी चाहिए दो गज़ कफ़न के बाद।


सामने है जो उसे लोग बुरा कहते हैं जिस

को देखा ही नहीं उस को ख़ुदा कहते हैं.


दिल के मंदिरों में कहीं बंदगी नहीं करते,

पत्थर की इमारतों में खुदा ढूंढ़ते हैं लोग।


हमारी हैसियत का अंदाज़ा तुम ये जान के लगा लो,

हम कभी उनके नहीं होते जो हर किसी के हो गए।


चाहत वो नहीं जो जान देती है,

चाहत वो नहीं जो मुस्कान देती है,

ऐ दोस्त चाहत तो वो है,जो पानी में

गिरा आंसू पहचान लेती हैं.


कुछ ग़मों का होना भी जरूरी है

ज़िंदगी में, ज़िंदा होने का अहसास

बना रहता हैं।


तू इश्क की दूसरी निशानी दे दे मुझको,

आँसू तो रोज गिर कर सूख जाते हैं।.


अपनी औकात भूल जाऊ इतना अमीर

भी नही हू मै,और कोई मेरी औकात

बताए इतना फकीर भी नहीं हू मै।


जिस चीज़ पे तू हाथ रख दे वो चीज़ तेरी हो,

और जिस से तू प्यार करे, वो तक़दीर मेरी हो.


खुश्क आँखों से भी अश्कों की महक आती है,

मैं तेरे गम को ज़माने से छुपाऊं कैसे।


तुम्हें पा लेते तो किस्सा ग़म का खत्म हो जाता,

तुम्हें खोया है तो यकीनन कहानी लम्बी चलेगी।

इंसानियत स्टेटस इन हिंदी

बहुत से कागज़ मिल जाते हैं एक खासियत

बेच कर, लोग पैसा कमाते हैं आज कल

इंसानियत बेच कर।


इंसान ही आता है काम इंसान के

मददगार कोई फरिश्ता नही होता

यह सच्चाई जान ले ऐ दोस्त इंसानियत

से बड़ा कोई रिश्ता नही होता.


इंसानियत की राह पर तुम्हे चलना होगा

ठोकरे खाकर ही ​भी तुम्हे संभलना होग.


जिनका मिलना मुकद्दर में लिखा नहीं होता,

उनसे मोहब्बत कसम से बा-कमाल होती है।


इन्सानियत की रौशनी गुम हो गई कहाँ,

साए तो हैं आदमी के मगर आदमी कहाँ.


पहले ज़मीं बँटी फिर घर भी बँट गया,

इंसान अपने आप में कितना सिमट गया।


इंसान की मदद करने इंसान ही आता है

इंसानियत का अपना एक उसूल होता है.


जरा सा बात करने का तरीका सीख लो तुम भी,

उधर तुम बात करते हो इधर दिल टूट जाता है।


आइना कोई ऐसा बना दे ऐ खुदा जो,

इंसान का चेहरा नहीं किरदार दिखा दे.


ना किसी क़यामत से रह गया है ना भगवान्

से रह गया है, इंसान को डर बस अब इंसान

से रह गया है।


खुद भूखा रहकर किसी को खिलाकर

तो देखिए कुछ यूं इंसानियत का फ़र्ज

निभाकर तो देखिए.


दिल की धड़कन और मेरी सदा है तू,

मेरी पहली और आखिरी वफ़ा है तू,

चाहा है तुझे चाहत से भी बढ़ कर,

मेरी चाहत और चाहत की इंतिहा है तू.


फितरत सोच और हालात में फर्क है वरना,

इन्सान कैसा भी हो दिल का बुरा नहीं होता.


बड़े ख़ास लोग भी देखे मगर ये खासियत नहीं मिली, मुझे इंसान बहुत मिले मगर इंसानियत नहीं मिली।


बहुत से कागज़ मिल जाते हैं एक खासियत बेच कर, लोग पैसा कमाते हैं आज कल इंसानियत बेच कर।


पुण्य नहीं रह गया कुछ दान नहीं रह गया, शरीर रह गया मगर इंसान ना रहा।


पहले ज़मीन बनती फिर घर बँट गए, इंसान खुद ही खुद में कितना सिमट गए।


यूँ मत समझना की ये काम किसी अनजान का है, पृथ्वी का ये बुरा हाल काम इंसान का है।


शरीर इंसान के मगर आत्मा कहीं गुम है, यहाँ सबसे पहले हम और बाद में आता तुम है।


सबके सर पर मानों हैवानियत सवार है, इंसान के शरीर बाकी है मगर इंसानियत फरार है।


देखें करीब से तो भी अच्छा दिखाई दे, एक आदमी तो शहर में ऐसा दिखाई दे।


लिखी जाए तो कभी ऐसी खूबसूरत दास्ताँ हो, ना धर्म से जुड़े ना जाट से जुड़े बस इंसान का इंसान से वास्ता हो।


हवा खराब हो गई चलो कोई गम नहीं, कम से कम इंसान तो अपने दिल साफ़ रखे।


जैसा है आज इंसान वैसा ना होता, अगर आज इस दुनिया में पैसा ना होता।

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