100+ मिर्जा गालिब की शायरी - Mirza Galib Shayari in Hindi

हेलो दोस्तों, आज की इस पोस्ट में हम आपके लिए मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी लेकर आये है। वह व्यक्ति अपनी शायरी से सबका मन जीत लिया करता था। अगर आप भी मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरी ढूंढ रहे है तो आप बिल्कुल सही जगह पर है। आप इन मिर्ज़ा ग़ालिब को अपने सोशल मीडिया पर शेयर कर सकते है। उम्मीद है कि यह पोस्ट पसंद आएंगे। 

Mirza Galib Shayari

100+ मिर्जा गालिब की शायरी - Mirza Galib Shayari in Hindi

हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है।

तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है।।


वो चीज़ जिसके लिये हमको हो बहिश्त अज़ीज़।

सिवाए बादा-ए-गुल्फ़ाम-ए-मुश्कबू क्या है।।


ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैं।

कभी सबा को, कभी नामाबर को देखते हैं।।


वो आए घर में हमारे, खुदा की क़ुदरत हैं।

कभी हम उनको, कभी अपने घर को देखते हैं।।


निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन।

बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले।।


कहाँ मय-ख़ाने का दरवाज़ा 'ग़ालिब' और कहाँ वाइज़।

पर इतना जानते हैं कल वो जाता था कि हम निकले।।


तेरे ज़वाहिरे तर्फ़े कुल को क्या देखें।

हम औजे तअले लाल-ओ-गुहर को देखते हैं।।


बना है शह का मुसाहिब, फिरे है इतराता।

वगर्ना शहर में "ग़ालिब" की आबरू क्या है।।


बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे

होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मिरे आगे।।


मुहब्बत में उनकी अना का पास रखते हैं

हम जानकर अक्सर उन्हें नाराज़ रखते हैं.


है और भी दुनिया में सुखनवर बहुत

अच्छे कहते है की ग़ालिब का है

अंदाज-ए-बयां और।


वो चीज़ जिसके लिये हमको हो बहिश्त अज़ीज़

सिवाए बादा-ए-गुल्फ़ाम-ए-मुश्कबू क्या है।।


मैं उदास बस्ती का अकेला वारिस,

उदास शख्सियत पहचान मेरी.


वो रास्ते जिन पे कोई सिलवट ना पड़ सकी,

उन रास्तों को मोड़ के सिरहाने रख लिया.


जब ख़ुशी मिली तो कई दर्द मुझसे रूठ गए,

दुआ करो कि मैं फिर से उदास हो जाऊं.


तू मिला है तो ये अहसास हुआ है मुझको

ये मेरी उम्र मोहब्बत के लिए थोड़ी है.


में ज़िन्दगी से पूछा तू इतनी मुश्किल क्यों है

ज़िन्दगी ने कहा, दुनिया आसान

चीज़ों की क़दर नहीं करती।


क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हां

रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन।।


उदासी पकड़ ही नहीं पाते लोग

इतना संभाल कर मुस्कुराते है हम।


गुज़रे हुए लम्हों को मैं इक बार तो जी लूँ,

कुछ ख्वाब तेरी याद दिलाने के लिए हैं.


ता फिर न इंतज़ार में नींद आये उम्र भर,

आने का अहद कर गये आये जो ख्वाब में।


हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे

कहते हैं कि ‘ग़ालिब’ का है अंदाज़-ए-बयाँ और।।


क़ैद में है तेरे वहशी को वही ज़ुल्फ़ की याद

हां कुछ इक रंज गरां बारी-ए-ज़ंजीर भी था.


उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़

वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है।।


तुम मिलो या न मिलो नसीब की बात है

पर सुकून बहुत मिलता है तुम्हे अपना सोचकर।


नज़र लगे न कहीं उसके दस्त-ओ-बाज़ू को

ये लोग क्यूँ मेरे ज़ख़्मे जिगर को देखते हैं।।


जरा सी छेद क्या हुई मेरे जेब में

सिक्कों से ज्यादा तो रिश्तेदार गिर गए।


कितना ख़ौफ होता है शाम के अंधेरों में।

पूछ उन परिंदों से जिनके घर नहीं होते।।


हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले।

बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले।।


हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे।

कहते हैं कि 'ग़ालिब' का है अंदाज़-ए-बयाँ और।।


न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता।

डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता।।


दर्द जब दिल में हो तो दवा कीजिए।

दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजिए।।


हाथों की लकीरों पे मत जा ऐ गालिब।

नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होते।।


वाइज़!! तेरी दुआओं में असर हो तो मस्जिद को हिलाके देख।

नहीं तो दो घूंट पी और मस्जिद को हिलता देख।।


नज़र लगे न कहीं उसके दस्त-ओ-बाज़ू को।

ये लोग क्यूँ मेरे ज़ख़्मे जिगर को देखते हैं।।


रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भी।

तो किस उम्मीद पे कहिये के आरज़ू क्या है।।


पियूँ शराब अगर ख़ुम भी देख लूँ दो चार।

ये शीशा-ओ-क़दह-ओ-कूज़ा-ओ-सुबू क्या है।।


रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल।

जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है।।


चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन।

हमारी ज़ेब को अब हाजत-ए-रफ़ू क्या है।।


हक़ीक़त ना सही तुम ख़्वाब बन कर मिला करो,

भटके मुसाफिर को चांदनी रात बनकर मिला करो।


न वो आ सके , न हम कभी जा सके ,

न दर्द दिल का किसीको सुना सके

बस खामोश बैठे है उसकी यादों में ,

न उसने याद किया न हम उसे भुला सके.


उनकी एक नजर को तरसते रहेंगे,

ये आंसू हर बार बरसते रहेंगे,

कभी बीते थे कुछ पल उनके साथ,

बस यही सोच कर हसते रहेंगे।


मिर्जा गालिब दर्द शायरी इन हिंदी

नहीं करनी अब मोहब्बत किसी से,

एक बार करके ही पछता लिए हम,

उसी ने दे दिए हमें जिंदगी के सारे गम..


मेरे मरने का एलान हुआ तो उसने भी यह

कह दिया,अच्छा हुआ मर गया बहुत उदास

रहता था।


उदास हूँ किसी की बेवफाई पर

वफाकही तो कर गए हो खुश रहो.


यों ही उदास है दिल बेकरार थोड़ी है,

मुझे किसी का कोई इंतज़ार थोड़ी है.


हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन।

दिल के खुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़्याल अच्छा है।।


रेख़्ते के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो 'ग़ालिब'।

कहते हैं अगले ज़माने में कोई 'मीर' भी था।।

Mirza Ghalib ki Shayari in Hindi

कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीम-कश को।

ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता।।


बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना।

आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना।।


बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे।

होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मिरे आगे।।


यही है आज़माना तो सताना किसको कहते हैं।

अदू के हो लिए जब तुम तो मेरा इम्तहां क्यों हो।।


तुम न आए तो क्या सहर न हुई

हाँ मगर चैन से बसर न हुई।


मेरा नाला सुना ज़माने ने

एक तुम हो जिसे ख़बर न हुई।।


आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक।

कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक।।


क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हां।

रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन।।


मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का।

उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले।।


न शोले में ये करिश्मा न बर्क़ में ये अदा।

कोई बताओ कि वो शोखे-तुंदख़ू क्या है।।


हुई मुद्दत कि 'ग़ालिब' मर गया पर याद आता है।

वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता।।


तेरे वादे पर जिये हम, तो यह जान, झूठ जाना।

कि ख़ुशी से मर न जाते, अगर एतबार होता।।


हुआ जब गम से यूँ बेहिश तो गम क्या सर के कटने का।

ना होता गर जुदा तन से तो जहानु पर धरा होता।।


जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा।

कुरेदते हो जो अब राख जुस्तजू क्या है।।


ये रश्क है कि वो होता है हमसुख़न हमसे।

वरना ख़ौफ़-ए-बदामोज़ी-ए-अदू क्या है।।


ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता।

अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता।।


रंज से ख़ूगर हुआ इंसाँ तो मिट जाता है रंज।

मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी कि आसाँ हो गईं।।


उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़

वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है।।


मेरी ज़िन्दगी है अज़ीज़ तर इसी वस्ती मेरे

हम सफर मुझे क़तरा क़तरा पीला ज़हर

जो करे असर बरी देर तक।


तेरे वादे पर जिये हम तो यह जान,झूठ जाना

कि ख़ुशी से मर न जाते अगर एतबार होता.


मंज़िल मिलेगी भटक कर ही सही

गुमराह तो वो हैं जो घर से निकले ही नहीं।

इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ग़ालिब

कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे।।


किसी फ़कीर की झोली मैं कुछ सिक्के

डाले तो ये अहसास हुआ महंगाई के इस

दौर मैं दुआएं आज भी सस्ती हैं।


मोहब्बत में नही फर्क जीने और मरने का उसी

को देखकर जीते है जिस ‘काफ़िर’ पे दम निकले.


रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल,

जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है.


इतना दर्द न दिया कर ए ज़िन्दगी

इश्क़ किया है कोई क़त्ल नहीं।


चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन

हमारी ज़ेब को अब हाजत-ए-रफ़ू क्या है।


तुम वो भी महसूस करलिया करो ना

जो हम तुमसे कह नहीं पाते हैं।


दर्द जब दिल में हो तो दवा कीजिए

दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजिए।।


आप कितने भी अच्छे इंसान क्यों न हो आप

किसी न किसी की कहानी में बुरे ज़रूर होते है।


है एक तीर जिस में दोनों छिदे पड़े हैं वो

दिन गए कि अपना दिल से जिगर जुदा था।


शक से भी अक्सर खत्म हो जाते है

रिश्ते कसूर हर बार गलतियों का नहीं होता।


रेख़्ते के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो ‘ग़ालिब’।

कहते हैं अगले ज़माने में कोई ‘मीर’ भी था।।


रंज से ख़ूगर हुआ इंसाँ तो मिट जाता है रंज।

मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी कि आसाँ हो गईं।।


ज़िन्दगी से हम अपनी कुछ उधार नही लेते,

कफ़न भी लेते है तो अपनी ज़िन्दगी देकर।


चाँदनी रातो कि खामोश सितारो के कसम,

दिल मै आब तेरे सिवा कोई भि आबाद नही.


अब तो आ जाओ साईं बहुत उदास है दिल,

सांसों की तरह जरूरी है, अब दीदार तेरा.


बिखरा वजूद, टूटे ख़्वाब, सुलगती तन्हाईयाँ,

कितने हसीन तोहफे दे जाती है ये मोहब्बत।


मोहब्बत तो दिल से की थी, दिमाग उसने लगा लिया

दिल तोड़ दिया मेरा उसने और इल्जाम मुझपर लगा दिया.


इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया।

वर्ना हम भी आदमी थे काम के।।


उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़।

वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है।।


काबा किस मुँह से जाओगे 'ग़ालिब'।

शर्म तुम को मगर नहीं आती।।


दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है।

आख़िर इस दर्द की दवा क्या है।।


इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब'।

कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे।।


इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना।

दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना।।


दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई।

दोनों को इक अदा में रज़ामंद कर गई।।


दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ।

मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ।। 

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