राहत इन्दौरी की शायरी बहुत ज्यादा famous है। सभी लोग उनकी शायरी को सुन्ना पसंद करते है और उन्हें सोशल मीडिया पर शेयर भी करते है। आज की इस पोस्ट में हम आपके राहत इन्दौरी की शायरी लेकर आये है आप इन शायरी को सोशल मीडिया शेयर कर सकते है उम्मीद है कि आपको यह शायरी बहुत पसंद आएगी।
Rahat Indori Shayari in Hindi
मुंतज़िर हूँ कि सितारों की ज़रा आँख लगे
चाँद को छत पुर बुला लूँगा इशारा कर के
बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए
मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए
अल्लाह बरकतों से नवाज़ेगा इश्क़ में
है जितनी पूँजी पास लगा देनी चाहिए
दिल भी किसी फ़क़ीर के हुजरे से कम नहीं
दुनिया यहीं पे ला के छुपा देनी चाहिए
मैं ख़ुद भी करना चाहता हूँ अपना सामना
तुझ को भी अब नक़ाब उठा देनी चाहिए
मैं फूल हूँ तो फूल को गुल-दान हो नसीब
मैं आग हूँ तो आग बुझा देनी चाहिए
मैं ताज हूँ तो ताज को सर पर सजाएँ लोग
मैं ख़ाक हूँ तो ख़ाक उड़ा देनी चाहिए
मैं जब्र हूँ तो जब्र की ताईद बंद हो
मैं सब्र हूँ तो मुझ को दुआ देनी चाहिए
मैं ख़्वाब हूँ तो ख़्वाब से चौंकाइए मुझे
मैं नींद हूँ तो नींद उड़ा देनी चाहिए
सच बात कौन है जो सर-ए-आम कह सके
मैं कह रहा हूँ मुझ को सज़ा देनी चाहिए
तुम्हें किसी की कहाँ है परवाह,
तुम्हारे वादे का क्या भरोसा,
जो पल की कह दो तो कल बना दो,
जो कल की कह दो तो साल कर दो।
राहत इंदौरी की दर्द भरी शायरी
जा के ये कह दो कोई शोलो से, चिंगारी से
फूल इस बार खिले है बड़ी तय्यारी से,
बादशाहों से भी फेंके हुए सिक्के ना लिए
हमने ख़ैरात भी माँगी है तो ख़ुद्दारी से।
कम नहीं हैं मुझे हमदमों से,
मेरा याराना है इन गमों से,
मैं खुशी को अगर मुंह लगा लूं,
मेरे यारों का दिल टूट जाए।
इश्क ने गूथें थे जो गजरे नुकीले हो गए,
तेरे हाथों में तो ये कंगन भी ढीले हो गए,
फूल बेचारे अकेले रह गए है शाख पर,
गाँव की सब तितलियों के हाथ पीले हो गए।
यही ईमान लिखते हैं, यही ईमान पढ़ते हैं,
हमें कुछ और मत पढवाओ, हम कुरान पढ़ते हैं,
यहीं के सारे मंजर हैं, यहीं के सारे मौसम हैं,
वो अंधे हैं, जो इन आँखों में पाकिस्तान पढ़ते हैं।
दिलों में आग, लबों पर गुलाब रखते हैं,
सब अपने चहेरों पर, दोहरी नकाब रखते हैं,
हमें चराग समझ कर भुझा ना पाओगे,
हम अपने घर में कई आफ़ताब रखते हैं।
जा के ये कह दे कोई शोलों से चिंगारी से इश्क़ है
फूल इसबार खिलेगी बड़ी तैयारी है
मुदात्तो क बाद यु तब्दिल हुआ है मौसम
जैसे छुटकारा मिली हो बीमारी से।
आग के पास कभी मोम को लाकर देखूँ,
हो इज़ाज़त तो तुझे हाथ लगाकर देखूँ,
दिल का मंदिर बड़ा वीरान नज़र आता है
सोचता हूँ तेरी तस्वीर लगाकर देखूँ।
नयी हवाओं की सोहबत बिगाड़ देती हैं,
कबूतरों को खुली छत बिगाड़ देती हैं,
जो जुर्म करते है इतने बुरे नहीं होते,
सज़ा न देके अदालत बिगाड़ देती हैं।
तेरी हर बात मोहब्बत में गँवारा करके,
दिल के बाज़ार में बैठे हैं खसारा करके,
मैं वो दरिया हूँ कि हर बूंद भंवर है जिसकी,
तुमने अच्छा ही किया मुझसे किनारा करके।
कभी महक की तरह हम गुलों से उड़ते हैं,
कभी धुएं की तरह पर्वतों से उड़ते हैं,
यह क्या हमें उड़ने से खाक रोकेंगे
कि हम परों से नहीं हौसलों से उड़ते हैं।
नींद पिछली सदी से ज़ख़्मी है
ख़्वाब अगली सदी के देखते हैं
रोज़ हम एक अंधेरी धुँध के पार
काफ़िले रौशनी के देखते हैं
धूप इतनी कराहती क्यों है
छाँव के ज़ख़्म सी के देखते हैं
टकटकी बाँध ली है आँखों ने
रास्ते वापसी के देखते हैं
बारिशों से तो प्यास बुझती नहीं
आइए ज़हर पी के देखते हैं
बैठे बैठे कोई ख़याल आया
ज़िंदा रहने का फिर सवाल आया
कौन दरियाओं का हिसाब रखे
नेकियाँ नेकियों में डाल आया
ज़िंदगी किस तरह गुज़ारते हैं
ज़िंदगी भर न ये कमाल आया
झूट बोला है कोई आईना
वर्ना पत्थर में कैसे बाल आया
वो जो दो-गज़ ज़मीं थी मेरे नाम
आसमाँ की तरफ़ उछाल आया
क्यूँ ये सैलाब सा है आँखों में
मुस्कुराए थे हम-ख़याल आया
अब ना मैं हूँ, ना बाकी हैं ज़माने मेरे,
फिर भी मशहूर हैं शहरों में फ़साने मेरे,
ज़िन्दगी है तो नए ज़ख्म भी लग जाएंगे,
अब भी बाकी हैं कई दोस्त पुराने मेरे।
विश्वास बन के लोग ज़िन्दगी में आते है,
ख्वाब बन के आँखों में समा जाते है,
पहले यकीन दिलाते है की वो हमारे है,
फिर न जाने क्यों बदल जाते है।
सूरज, सितारे, चाँद मेरे साथ में रहें,
जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहें,
शाखों से टूट जाए वो पत्ते नहीं हैं हम,
आंधी से कोई कह दे की औकात में रहें।
लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के सँभलते क्यूँ हैं,
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यूँ हैं।
मेरी सांसों में समाया भी बहुत लगता है,
और वही शख्स पराया भी बहुत लगता है,
उससे मिलने की तमन्ना भी बहुत है लेकिन
आने जाने में किराया भी बहुत लगता है।
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो,
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो,
एक ही नद्दी के हैं ये दो किनारे दोस्तो
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो।
ये सहारा जो नहीं हो तो परेशान हो जाएँ,
मुश्किलें जान ही लेलें अगर आसान हो जाएँ,
ये जो कुछ लोग फरिश्तों से बने फिरते हैं,
मेरे हत्थे कभी चढ़ जाएँ तो इंसान हो जाएँ।
फैसला जो कुछ भी हो, हमें मंजूर होना चाहिए,
जंग हो या इश्क हो, भरपूर होना चाहिए,
भूलना भी हैं, जरुरी याद रखने के लिए,
पास रहना है, तो थोडा दूर होना चाहिए।
हमारे शहर के मंज़र न देख पाएँगे
यहाँ के लोग तो आँखों में ख़्वाब रखते हैं
दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राय ली जाए
मौत का ज़हर है फ़ज़ाओं में
अब कहाँ जा के साँस ली जाए
बस इसी सोच में हूँ डूबा हुआ
ये नदी कैसे पार की जाए
अगले वक़्तों के ज़ख़्म भरने लगे
आज फिर कोई भूल की जाए
लफ़्ज़ धरती पे सर पटकते हैं
गुम्बदों में सदा न दी जाए
कह दो इस अहद के बुज़ुर्गों से
ज़िंदगी की दुआ न दी जाए
बोतलें खोल के तो पी बरसों
आज दिल खोल कर ही पी जाए
काम सब ग़ैर-ज़रूरी हैं जो सब करते हैं
और हम कुछ नहीं करते हैं ग़ज़ब करते हैं
आप की नज़रों में सूरज की है जितनी अज़्मत
हम चराग़ों का भी उतना ही अदब करते हैं
हम पे हाकिम का कोई हुक्म नहीं चलता है
हम क़लंदर हैं शहंशाह लक़ब करते हैं
ज़िंदगी है एक सफ़र और ज़िंदगी की राह में,
ज़िंदगी भी आए तो ठोकर लगानी चाहिए !
मैंने अपनी ख़ुश्क आँखों से लहू छलका दिया,
एक समुंदर कह रहा था मुझको पानी चाहि
न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा,
हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा !
मैं जानता था कि ज़हरीला साँप बन बन कर,
तिरा ख़ुलूस मिरी आस्तीं से निकलेगा !
इसी गली में वो भूखा फ़क़ीर रहता था,
तलाश कीजे ख़ज़ाना यहीं से निकलेगा !
बुज़ुर्ग कहते थे इक वक़्त आएगा जिस दिन,
जहाँ पे डूबेगा सूरज वहीं से निकलेगा !
गुज़िश्ता साल के ज़ख़्मों हरे-भरे रहना,
जुलूस अब के बरस भी यहीं से निकलेगा
घर से ये सोच के निकला हूँ कि मर जाना है
अब कोई राह दिखा दे कि किधर जाना है
जिस्म से साथ निभाने की मत उम्मीद रखो
इस मुसाफ़िर को तो रस्ते में ठहर जाना है
मौत लम्हे की सदा ज़िंदगी उम्रों की पुकार
मैं यही सोच के ज़िंदा हूँ कि मर जाना है
नश्शा ऐसा था कि मय-ख़ाने को दुनिया समझा
होश आया तो ख़याल आया कि घर जाना है
मिरे जज़्बे की बड़ी क़द्र है लोगों में मगर
मेरे जज़्बे को मिरे साथ ही मर जाना है
पाँव कमर तक धँस जाते हैं धरती में
हाथ पसारे जब ख़ुद्दारी रहती है
Rahat Indori Shayari Hindi
वो मंज़िल पर अक्सर देर से पहुँचे हैं
जिन लोगों के पास सवारी रहती है
छत से उस की धूप के नेज़े आते हैं
जब आँगन में छाँव हमारी रहती है
घर के बाहर ढूँढता रहता हूँ दुनिया
घर के अंदर दुनिया-दारी रहती है
सिसकती रुत को महकता गुलाब कर दूँगा
मैं इस बहार में सब का हिसाब कर दूँगा
मैं इंतिज़ार में हूँ तू कोई सवाल तो कर
यक़ीन रख मैं तुझे ला-जवाब कर दूँगा
हज़ार पर्दों में ख़ुद को छुपा के बैठ मगर
तुझे कभी न कभी बे-नक़ाब कर दूँगा
मुझे भरोसा है अपने लहू के क़तरों पर
मैं नेज़े नेज़े को शाख़-ए-गुलाब कर दूँगा
मुझे यक़ीन कि महफ़िल की रौशनी हूँ मैं
उसे ये ख़ौफ़ कि महफ़िल ख़राब कर दूँगा
मुझे गिलास के अंदर ही क़ैद रख वर्ना
मैं सारे शहर का पानी शराब कर दूँगा
महाजनों से कहो थोड़ा इंतिज़ार करें
शराब-ख़ाने से आ कर हिसाब कर दूँगा
चराग़ों को उछाला जा रहा है
हवा पर रोब डाला जा रहा है
न हार अपनी न अपनी जीत होगी
मगर सिक्का उछाला जा रहा है
ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे
नींद रखो या न रखो ख़्वाब मेयारी रखो
ये हवाएँ उड़ न जाएँ ले के काग़ज़ का बदन
दोस्तो मुझ पर कोई पत्थर ज़रा भारी रखो
ले तो आए शाइरी बाज़ार में 'राहत' मियाँ
क्या ज़रूरी है कि लहजे को भी बाज़ारी रखो
रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है
एक दीवाना मुसाफ़िर है मिरी आँखों में
वक़्त-बे-वक़्त ठहर जाता है चल पड़ता है
अपनी ताबीर के चक्कर में मिरा जागता ख़्वाब
रोज़ सूरज की तरह घर से निकल पड़ता है
रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं
रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है
उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है
कहीं अकेले में मिल कर झिंझोड़ दूँगा उसे
जहाँ जहाँ से वो टूटा है जोड़ दूँगा उसे
मुझे वो छोड़ गया ये कमाल है उस का
इरादा मैं ने किया था कि छोड़ दूँगा उसे
बदन चुरा के वो चलता है मुझ से शीशा-बदन
उसे ये डर है कि मैं तोड़ फोड़ दूँगा उसे
ये सर्द रातें भी बन कर अभी धुआँ उड़ जाएँ
वो इक लिहाफ़ मैं ओढूँ तो सर्दियाँ उड़ जाएँ
ख़ुदा का शुक्र कि मेरा मकाँ सलामत है
हैं उतनी तेज़ हवाएँ कि बस्तियाँ उड़ जाएँ
ज़मीं से एक तअल्लुक़ ने बाँध रक्खा है
बदन में ख़ून नहीं हो तो हड्डियाँ उड़ जाएँ
बिखर बिखर सी गई है किताब साँसों की
ये काग़ज़ात ख़ुदा जाने कब कहाँ उड़ जाएँ
रहे ख़याल कि मज्ज़ूब-ए-इश्क़* हैं हम लोग
अगर ज़मीन से फूंकें तो आसमाँ उड़ जाएँ
हवाएँ बाज़ कहाँ आती हैं शरारत से
सरों पे हाथ न रक्खें तो पगड़ियाँ उड़ जाएँ
बहुत ग़ुरूर* है दरिया को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ
मज्ज़ूब-ए-इश्क़ – प्यार से भरे हुए
ग़ुरूर – घमंड
हौसले ज़िंदगी के देखते हैं
चलिए! कुछ रोज़ जी के देखते हैं
अंधेरे चारों तरफ़ साएँ साएँ करने लगे
चराग़ हाथ उठा कर दुआएँ करने लगे
तरक़्क़ी कर गए बीमारियों के सौदागर
ये सब मरीज़ हैं जो अब दवाएँ करने लगे
लहू-लुहान पड़ा था ज़मीं पर इक सूरज
परिंदे अपने परों से हवाएँ करने लगे
ज़मीं पर आ गए आँखों से टूट कर आँसू
बुरी ख़बर है फ़रिश्ते ख़ताएँ करने लगे
झुलस रहे हैं यहाँ छाँव बाँटने वाले
वो धूप है कि शजर इल्तिजाएँ करने लगे
अजीब रंग था मज्लिस का ख़ूब महफ़िल थी
सफ़ेद पोश उठे काएँ काएँ करने लगे
जला न लो कहीं हमदर्दियों में अपना वजूद,
गली में आग लगी हो तो अपने घर में रहो !
तुम्हें पता ये चले घर की राहतें क्या हैं,
हमारी तरह अगर चार दिन सफ़र में रहो !
है अब ये हाल कि दर दर भटकते फिरते हैं,
ग़मों से मैं ने कहा था कि मेरे घर में रहो !
किसी को ज़ख़्म दिए हैं किसी को फूल दिए,
बुरी हो चाहे भली हो मगर ख़बर में रहो !!
अब अपनी रूह के छालों का कुछ हिसाब करूँ
मैं चाहता था चराग़ों को आफ़्ताब करूँ
मुझे बुतों से इजाज़त अगर कभी मिल जाए
तो शहर-भर के ख़ुदाओं को बे-नक़ाब करूँ
उस आदमी को बस इक धुन सवार रहती है
बहुत हसीन है दुनिया इसे ख़राब करूँ
है मेरे चारों तरफ़ भीड़ गूँगे बहरों की
किसे ख़तीब बनाऊँ किसे ख़िताब करूँ
मैं करवटों के नए ज़ाइक़े लिखूँ शब-भर
ये इश्क़ है तो कहाँ ज़िंदगी अज़ाब करूँ
ये ज़िंदगी जो मुझे क़र्ज़-दार करती रही
कहीं अकेले में मिल जाए तो हिसाब करूँ
वो एक एक बात पे रोने लगा था,
समुंदर आबरू खोने लगा था !
लगे रहते थे सब दरवाज़े फिर भी,
मैं आँखें खोल कर सोने लगा था !
चुराता हूँ अब आँखें आइनों से,
ख़ुदा का सामना होने लगा था !
वो अब आईने धोता फिर रहा है,
उसे चेहरे पे शक होने लगा था !
मुझे अब देख कर हँसती है दुनिया,
मैं सब के सामने रोने लगा था !!
बुलाती है मगर जाने का नईं
ये दुनिया है इधर जाने का नईं
मेरे बेटे किसी से इश्क़ कर
मगर हद से गुजर जाने का नईं
सितारें नोच कर ले जाऊँगा
मैं खाली हाथ घर जाने का नईं
वबा फैली हुई है हर तरफ
अभी माहौल मर जाने का नईं
मैं आइनों से तो मायूस लौट आया था
मगर किसी ने बताया बहुत हसीं हूँ मैं
वो ज़र्रे ज़र्रे में मौजूद है मगर मैं भी
कहीं कहीं हूँ कहाँ हूँ कहीं नहीं हूँ मैं
वो इक किताब जो मंसूब तेरे नाम से है
उसी किताब के अंदर कहीं कहीं हूँ मैं
सितारो आओ मिरी राह में बिखर जाओ
ये मेरा हुक्म है हालाँकि कुछ नहीं हूँ मैं
यहीं हुसैन भी गुज़रे यहीं यज़ीद भी था
हज़ार रंग में डूबी हुई ज़मीं हूँ मैं
ये बूढ़ी क़ब्रें तुम्हें कुछ नहीं बताएँगी
मुझे तलाश करो दोस्तो यहीं हूँ मैं
लोग हर मोड़ पे रुक रुक के सँभलते क्यूँ हैं
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यूँ हैं
मय-कदा ज़र्फ़ के मेआ'र का पैमाना है
ख़ाली शीशों की तरह लोग उछलते क्यूँ हैं
मोड़ होता है जवानी का सँभलने के लिए
और सब लोग यहीं आ के फिसलते क्यूँ हैं
नींद से मेरा तअल्लुक़ ही नहीं बरसों से
ख़्वाब आ आ के मिरी छत पे टहलते क्यूँ हैं
मैं न जुगनू हूँ दिया हूँ न कोई तारा हूँ
रौशनी वाले मिरे नाम से जलते क्यूँ हैं
दिलों में आग लबों पर गुलाब रखते हैं
सब अपने चेहरों पे दोहरी नक़ाब रखते हैं
हमें चराग़ समझ कर बुझा न पाओगे
हम अपने घर में कई आफ़्ताब रखते हैं
बहुत से लोग कि जो हर्फ़-आशना भी नहीं
इसी में ख़ुश हैं कि तेरी किताब रखते हैं
तन्हाई ले जाती है जहाँ तक याद तुम्हारी,
वही से शुरू होती है ज़िन्दगी हमारी,
नहीं सोचा था चाहेंगे हम तुम्हे इस कदर,
पर अब तो बन गए हो तुम किस्मत हमारी।
सफ़र की हद है वहाँ तक की कुछ निशान रहे,
चले चलो की जहाँ तक ये आसमान रहे,
ये क्या उठाये कदम और आ गयी मंजिल,
मज़ा तो तब है के पैरों में कुछ थकान रहे।
है सादगी में अगर यह आलम,
के जैसे बिजली चमक रही है,
जो बन संवर के सड़क पे निकलो,
तो शहर भर में धमाल कर दो।
अजनबी ख़्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ,
ऐसे ज़िद्दी हैं परिंदे कि उड़ा भी न सकूँ,
फूँक डालूँगा किसी रोज़ मैं दिल की दुनिया,
ये तेरा ख़त तो नहीं है कि जला भी न सकूँ।
अब ना मैं हूँ, ना बाकी हैं ज़माने मेरे,
फिर भी मशहूर हैं, शहरों में फ़साने मेरे।
हम अपनी जान के दुश्मन को अपनी जान कहते हैं,
मोहब्बत की इसी मिट्टी को हिन्दुस्तान कहते हैं,
जो दुनिया में सुनाई दे उसे कहते हैं खामोशी,
जो आँखों में दिखाई दे उसे तूफान कहते हैं।
राहत इंदौरी शायरी हिंदी 2 लाइन
साँसे हैं हवा दी है, मोहब्बत है वफ़ा है,
यह फैसला मुश्किल है कि हम किसके लिए हैं,
गुस्ताख ना समझो तो मुझे इतना बता दो,
अपनों पर सितम है तो करम किसके लिए हैं।
ये दुनिया है इधर जाने का नईं,
मेरे बेटे किसी से इश्क़ कर,
मगर हद से गुजर जाने का नईं।
कभी महक की तरह हम गुलों से उड़ते हैं,
कभी धुएं की तरह पर्वतों से उड़ते हैं,
ये केचियाँ हमें उड़ने से खाक रोकेंगी,
की हम परों से नहीं हौसलों से उड़ते हैं।
आग के पास कभी मोम को लाकर देखूँ,
हो इज़ाज़त तो तुझे हाथ लगाकर देखूँ,
दिल का मंदिर बड़ा वीरान नज़र आता है,
सोचता हूँ तेरी तस्वीर लगाकर देखूँ।
ये हादसा तो किसी दिन गुज़रने वाला था,
मैं बच भी जाता तो इक रोज़ मरने वाला था।
सरहदों पर तनाव हे क्या,
ज़रा पता तो करो चुनाव हैं क्या,
शहरों में तो बारूदो का मौसम हैं,
गाँव चलों अमरूदो का मौसम हैं।
कही अकेले में मिलकर झंझोड़ दूँगा उसे,
जहाँ जहाँ से वो टूटा है जोड़ दूँगा उसे,
मुझे वो छोड़ गया ये कमाल है उस का,
इरादा मैंने किया था की छोड़ दूँगा उसे।
एक ही नद्दी के हैं ये दो किनारे दोस्तो
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो
आते जाते पल ये कहते हैं हमारे कान में
कूच का ऐलान होने को है तय्यारी रखो
पसीने बाँटता फिरता है हर तरफ़ सूरज
कभी जो हाथ लगा तो निचोड़ दूँगा उसे
मज़ा चखा के ही माना हूँ मैं भी दुनिया को
समझ रही थी कि ऐसे ही छोड़ दूँगा उसे
तेरी हर बात मोहब्बत में गवारा कर के
दिल के बाज़ार में बैठे हैं ख़सारा कर के
आते जाते हैं कई रंग मिरे चेहरे पर
लोग लेते हैं मज़ा ज़िक्र तुम्हारा कर के
एक चिंगारी नज़र आई थी बस्ती में उसे
वो अलग हट गया आँधी को इशारा कर के
आसमानों की तरफ़ फेंक दिया है मैं ने
चंद मिट्टी के चराग़ों को सितारा कर के
मैं वो दरिया हूँ कि हर बूँद भँवर है जिस की
तुम ने अच्छा ही किया मुझ से किनारा कर के
हाथ ख़ाली हैं तिरे शहर से जाते जाते
जान होती तो मिरी जान लुटाते जाते
अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है
उम्र गुज़री है तिरे शहर में आते जाते
अब के मायूस हुआ यारों को रुख़्सत कर के
जा रहे थे तो कोई ज़ख़्म लगाते जाते
रेंगने की भी इजाज़त नहीं हम को वर्ना
हम जिधर जाते नए फूल खिलाते जाते
मैं तो जलते हुए सहराओं का इक पत्थर था
तुम तो दरिया थे मिरी प्यास बुझाते जाते
मुझ को रोने का सलीक़ा भी नहीं है शायद
लोग हँसते हैं मुझे देख के आते जाते
हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे
कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते
अजनबी ख्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ
ऐसे जिद्दी हैं परिंदे के उड़ा भी न सकूँ
इक न इक रोज कहीं ढ़ूँढ़ ही लूँगा तुझको
ठोकरें ज़हर नहीं हैं कि मैं खा भी न सकूँ
फल तो सब मेरे दरख्तों के पके हैं लेकिन
इतनी कमजोर हैं शाखें कि हिला भी न सकूँ
मैंने माना कि बहुत सख्त है ग़ालिब कि ज़मीन
क्या मेरे शेर है ऐसे कि सुना भी न सकूं
सिर्फ़ ख़ंजर ही नहीं आँखों में पानी चाहिए,
ऐ ख़ुदा दुश्मन भी मुझको ख़ानदानी चाहिए !
शहर की सारी अलिफ़-लैलाएँ बूढ़ी हो चुकीं,
शाहज़ादे को कोई ताज़ा कहानी चाहिए !
मैंने ऐ सूरज तुझे पूजा नहीं समझा तो है,
मेरे हिस्से में भी थोड़ी धूप आनी चाहिए !
मेरी क़ीमत कौन दे सकता है इस बाज़ार में,
तुम ज़ुलेख़ा हो तुम्हें क़ीमत लगानी चाहिए !
मैं लाख कह दूँ कि आकाश हूँ ज़मीं हूँ मैं
मगर उसे तो ख़बर है कि कुछ नहीं हूँ मैं
अजीब लोग हैं मेरी तलाश में मुझ को
वहाँ पे ढूँड रहे हैं जहाँ नहीं हूँ मैं
ये मय-कदा है वो मस्जिद है वो है बुत-ख़ाना
कहीं भी जाओ फ़रिश्ते हिसाब रखते हैं
देखिए जिस को उसे धुन है मसीहाई की
आज कल शहर के बीमार मतब करते हैं
ख़ुद को पत्थर सा बना रक्खा है कुछ लोगों ने
बोल सकते हैं मगर बात ही कब करते हैं
एक इक पल को किताबों की तरह पढ़ने लगे
उम्र भर जो न किया हम ने वो अब करते हैं
कभी दिमाग़ कभी दिल कभी नज़र में रहो,
ये सब तुम्हारे ही घर हैं किसी भी घर में रहो !
वो गर्दन नापता है नाप ले
मगर जालिम से डर जाने का नईं
रात की धड़कन जब तक जारी रहती है
सोते नहीं हम ज़िम्मेदारी रहती है
जब से तू ने हल्की हल्की बातें कीं
यार तबीअत भारी भारी रहती है
वो देखो मय-कदे के रास्ते में
कोई अल्लाह-वाला जा रहा है
थे पहले ही कई साँप आस्तीं में
अब इक बिच्छू भी पाला जा रहा है
मिरे झूटे गिलासों की छका कर
बहकतों को सँभाला जा रहा है
हमी बुनियाद का पत्थर हैं लेकिन
हमें घर से निकाला जा रहा है
जनाज़े पर मिरे लिख देना यारो
मोहब्बत करने वाला जा रहा है
तुम ही सनम हो, तुम ही खुदा हो,
वफा भी तुम हो तुम, तुम ही जफा हो,
सितम करो तो मिसाल कर दो,
करम करो तो कमाल कर दो।
धनक है, रंग है, एहसास है की खुशबू है,
चमक है, नूर है, मुस्कान है के आँसू है,
मैं नाम क्या दूं उजालों की इन लकीरों को
खनक है, रक्स है, आवाज़ है की जादू है।
प्यार के उजाले में गम का अँधेरा क्यों है,
जिसको हम चाहे वही रुलाता क्यों है,
मेरे रब्बा अगर वो मेरा नसीब नहीं तो,
ऐसे लोगो से हमे मिलता क्यों है।
मैं एक गहरी ख़ामोशी हूँ आ झिंझोड़ मुझे,
मेरे हिसार में पत्थर-सा गिर के तोड़ मुझे,
बिखर सके तो बिखर जा मेरी तरह तू भी,
मैं तुझको जितना समेटूँ तू उतना जोड़ मुझे।
फैसला जो कुछ भी हो, मंज़ूर होना चाहिए,
जंग हो या इश्क़ हो, भरपूर होना चाहिए।
जहाँ से गुजरो धुआं बिछा दो,
जहाँ भी पहुंचो धमाल कर दो,
तुम्हें सियासत ने हक दिया है,
हरी जमीनों को लाल कर दो।
किसने दस्तक दी है दिल पर कौन है ,
आप तो अंदर हैं, बाहर कौन है।
जो छेड़ दे कोई नगमा तो खिल उठें तारे,
हवा में उड़ने लगी रोशनी के फव्वारे,
आप सुनते ही नजरों में तैर जाते हैं,
दुआएं करते हुए मस्जिदों के मीनारें।
अजीब लोग हैं मेरी तलाश में मुझको,
वहाँ पर ढूंढ रहे हैं जहाँ नहीं हूँ मैं,
मैं आईनों से तो मायूस लौट आया था,
मगर किसी ने बताया बहुत हसीं हूँ मैं।
शहरों में तो बारुदों का मौसम है,
गांव चलो अमरूदों का मौसम है,
सूख चुके हैं सारे फूल फरिश्तों के,
बागों में नमरूदों का मौसम है।
लू भी चलती थी तो बादे-शबा कहते थे,
पांव फैलाये अंधेरो को दिया कहते थे,
उनका अंजाम तुझे याद नही है शायद,
और भी लोग थे जो खुद को खुदा कहते थे।
मेरी ख्वाहिश है कि आंगन में न दीवार उठे,
मेरे भाई, मेरे हिस्से की जमीं तू रख ले
कभी दिमाग, कभी दिल, कभी नजर में रहो,
ये सब तुम्हारे घर हैं, किसी भी घर में रहो।
साँसों की सीडियों से उतर आई जिंदगी,
बुझते हुए दिए की तरह जल रहे हैं हम,
उम्रों की धुप, जिस्म का दरिया सुखा गई,
हैं हम भी आफताब, मगर ढल रहे हैं हम।
छू गया जब कभी ख़याल तेरा,
दिल मेरा देर तक धड़कता रहा,
कल तेरा जिक्र छिड़ गया था घर में,
और घर देर तक महकता रहा।
रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं,
चाँद पागल हैं अन्धेरें में निकल पड़ता हैं,
उसकी याद आई हैं सांसों, जरा धीरे चलो,
धडकनों से भी इबादत में खलल पड़ता हैं।
शहर क्या देखें कि हर मंज़र में जाले पड़ गए,
ऐसी गर्मी है कि पीले फूल काले पड़ गए।
लवे दीयों की हवा में उछालते रहना,
गुलो के रंग पे तेजाब डालते रहना,
में नूर बन के ज़माने में फ़ैल जाऊँगा,
तुम आफताब में कीड़े निकालते रहना।
जवानिओं में जवानी को धुल करते हैं,
जो लोग भूल नहीं करते, भूल करते हैं,
अगर अनारकली हैं सबब बगावत का,
सलीम हम तेरी शर्ते कबूल करते हैं।
मेरे हुजरे में नहीं, और कंही पर रख दो,
आसमां लाए हो, ले आओ, ज़मीन पर रख दो
अरे यार कहां ढूंढने जाओगे हमारे कातिल
आप तो कत्ल का इल्ज़ाम हमी पर रख दो
तूफ़ानों से आँख मिलाओ, सैलाबों पर वार करो
मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो
उस आदमी को बस इक धुन सवार रहती है
बहुत हसीन है दुनिया इसे ख़राब करूं
तूफ़ानों से आंख मिलाओ, सैलाबों पे वार करो
मल्लाह का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो
फूलों की दुकानें खोलो, ख़ुशबू का व्यापार करो
इश्क़ खता है, तो ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो
हम अपनी जान के दुश्मन को अपनी जान कहते है
मोहब्बत की इसी मिट्टी को हिन्दुस्तान कहते हैं
जो ये दीवार का सुराख है साज़िश है लोगों की,
मगर हम इसको अपने घर का रोशनदान कहते हैं
कल तक दर दर फिरने वाले,
घर के अंदर बैठे हैं और
बेचारे घर के मालिक, दरवाजे पर बैठे हैं,
खुल जा सिम सिम, याद है किसको,
कौन कहे और कौन सुने?
गूंगे बाहर सीख रहे हैं, बहरे अंदर बैठे हैं
सूरज, सितारे, चाँद मेरे साथ में रहें,
जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहें।
जागने की भी, जगाने की भी, आदत हो जाए,
काश तुझको किसी शायर से मोहब्बत हो जाए।
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो
राह के पत्थर से बढ़ कर कुछ नहीं हैं मंज़िलें
रास्ते आवाज़ देते हैं सफ़र जारी रखो
फूँक डालूँगा किसी रोज ये दिल की दुनिया
ये तेरा खत तो नहीं है कि जला भी न सकूँ
मेरी गैरत भी कोई शय है कि महफ़िल में मुझे
उसने इस तरह बुलाया है कि जा भी न सकूँ
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